"मेरे मम्मी-पापा साथ रहें": 16 महीने के मासूम की गुहार पर हाईकोर्ट ने लिव-इन रिश्ते को दी कानूनी मान्यता

Author: The Legal Lab | Date: 2025-04-11 14:36:16

उत्तर प्रदेश के संभल जिले से सामने आई एक अनोखी और संवेदनशील याचिका ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। एक 16 महीने के मासूम की तरफ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका में गुहार लगाई गई कि उसके माता-पिता को साथ रहने दिया जाए, भले ही वे शादीशुदा न हों। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए लिव-इन रिलेशनशिप को संवैधानिक अधिकार करार दिया।

क्या था मामला?

महिला ने याचिका दाखिल कर बताया कि उसके पहले पति की मृत्यु हो चुकी है। इसके बाद उसने एक अन्य पुरुष के साथ सहमति से नया रिश्ता शुरू किया। दोनों वर्ष 2018 से साथ रह रहे हैं और इसी रिश्ते से उनका एक बेटा भी हुआ। लेकिन महिला ने आरोप लगाया कि उसके ससुराल पक्ष के लोग अब इस रिश्ते पर हमला कर रहे हैं। धमकियाँ दी जा रही हैं और कई बार जानलेवा हमला भी हुआ, मगर स्थानीय पुलिस ने न एफआईआर दर्ज की, न कोई ठोस कार्रवाई की।

बच्चे की तरफ से क्या कहा गया?

बच्चे की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि उसके विकास और परवरिश के लिए यह जरूरी है कि उसकी मां और पिता एक साथ रहें। भले ही वे शादीशुदा न हों, लेकिन वे एक स्थायी रिश्ते में हैं और साथ रहना उनका अधिकार है।

कोर्ट का क्या फैसला आया?

जस्टिस शेखर सर्राफ और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की बेंच ने साफ किया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर वयस्क को अपनी इच्छा से साथ रहने का अधिकार है।
कोर्ट ने कहा:

“अगर दो वयस्क आपसी सहमति से साथ रहना चाहते हैं, तो यह उनका मौलिक अधिकार है – भले ही वे विवाहबंधन में न बंधे हों।”

पुलिस को निर्देश

  • कोर्ट ने संभल के एसपी को निर्देश दिया कि मामले में तत्काल एफआईआर दर्ज की जाए।

  • यदि पीड़ित युगल सुरक्षा की मांग करता है, तो उन्हें और उनके बच्चे को सुरक्षा प्रदान की जाए।

  • यह आदेश अनिवार्य रूप से लागू किया जाए।

क्यों है यह फैसला ऐतिहासिक?

यह निर्णय केवल एक परिवार के लिए राहत नहीं है, बल्कि लिव-इन रिश्तों, बच्चों के अधिकारों और अंतरधार्मिक प्रेम संबंधों को लेकर न्यायपालिका की सोच में बदलाव का संकेत देता है। यह फैसला आने वाले समय में कई संवेदनशील मामलों की दिशा तय कर सकता है।


 Source: Jansatta लेख: The Legal Lab टीम
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